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बुधवार, 8 मई 2013

चुनाव मशीनों में ट्रॉजन जिन्न: सीआईए का षडयंत्र !


चुनाव मशीनों में ट्रॉजन जिन्न
सीआईए का षडयंत्र !
विशेष संवाददाता

(यह लेख भी कोई तीन साल पहले लिखा गया. इससे भी ईवीएम में की जा रही भारी गडबडी की पुष्टि होती है) ------------------------------------------------------------
नई दिल्ली : भारतीय चुनाव प्रक्रिया को क्या सीआईए नियंत्रित कर रहा है? राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठने लगा है। यह कोई हवाई सवाल नहीं है, बल्कि खुद सीआईए के एक एजेंट ने अमेरिकी संसद में कहा है कि सीआईए ने ट्रॉजन के जरिये कोई 25 देशों की चुनाव प्रक्रिया को मनमाने ढंग से प्रभावित किया है। ऐसे में यह प्रशन पूछना स्वाभाविक है कि क्या 2009 के लोकसभा चुनाव में भी सीआईए ने ही षडयंत्र करके कांग्रेस-संप्रग की सरकार बनवायी ? 2009 के लोकसभा चुनाव के परिणामों पर बहुत पहले से ही अंगुली उठायी जाती रही है और चुनाव मशीनों में हेर-फेर के आरोप लगाये जा रहे हैं।
    इन आरोपों को चुनाव आयुक्त बार-बार खारिज करते रहे हैं, फिर भी आरोपों का दौर बदस्तूर जारी है। सीपीएम महाेचिव प्रकाश करात ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर ईवीएम मशीनों की विश्वसनियता पर सवाल खड़े किए हैं और सर्वदलीय बैठक की मांग की है। ध्यान रहे कि 2009 के लोकसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद से ही ईवीएम में हेरफेर का आरोप लगने लगा था। बाद में भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा मशीनों पर संदेह व्यक्त करने से मामला तूल पकड़ने लगा। लाल प्रसाद-पासवान-जयललिता-सीपीएम सहित अनेक नेताओं और दलों ने इसकी विश्वसनियता पर सवाल उठाये। लेकिन चुनाव आयोग अपनी पर अड़ा रहा। गौरतलब है कि इन दिनों चुनाव आयोग के तीनों आयुक्त कांग्रेस समर्थक माने जाते हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला खुल्लमखुल्ला कांग्रेसी रहे हैं।
    ध्यान रखना जरूरी है कि चुनाव आयुक्त और वहां के अन्य अधिकारी सूचना तकनीक के विशेषज्ञ नहीं हैं। वे अपने तकनीकी विषयों पर निर्भर हैं। ईवीएम से जुड़ी कोई भी बड़ी जानकारी आयोग के पास नहीं है। पूर्व आईएएस अधिकारी और आईआईटी के मैकेनिकल इंजीनियर उमेश सहगल के अनुसार सारा खेल ईवीएम बनानेवाली कंपनियों के हाथ में है, जो बहुत कुछ छिपा रही हैं। चुनाव आयोग जिस सोर्स कोड को पास करता है, उसे चिप की भाषा यानि ऑब्जेक्ट कोड में बदलने के बाद आयोग को दिखाया नहीं जाता। यहां बड़ी आसानी से चिप का प्रोग्राम बदला जा सकता है। अमेरिका का माइक्रो चिप कारपोरेशन और जापान की हिताची हमारे ईवीएम चिप बना रही है, जो उसमें भरे विवरण को मास्क कर देती है। अर्थात् उसके बारे में कुछ भी जानना मुश्किल है। जिस सोर्स कोड को चुनाव आयोग ने पास किया, वह भी उनके पास नहीं है। यह देश के लिए गंभीर खतरा है।
    उमेश सहगल आगे कहते हैं सीआईए के एक एजेंट ने अमेरिकी कांग्रेस में कहा कि सीआईए ने ट्रॉजन के जरिये 25 देशों के चुनावों में हेरा-फेरी की है। तो क्या भारत भी उन देशों में एक है? सत्ता में बैठे लोगों को मेरी बात नागवार लगेगी, मगर उन्हें समझना चाहिए कि कल उनके साथ भी ऐसा हो सकता है। क्योंकि चुनाव मशीन की चाबी कहीं बाहर है। इसके अलावा ईवीएम बनानेवाली बीईएल और ईसीआईएल हमारे लिए रक्षा उपकरण भी बनाती है। पनडुब्बी, रडार, मिसाइल समेत सभी रक्षा उपकरणों में चिप लगे होते हैं। क्या इनके चिप भी बाहर से बन कर आते हैं? अगर ऐसा है तो इनके बारे में सारी जानकारी अन्य देशों के पास भी हैं, जो भारत के लिए खतरनाक हैं।
सहगल की बातों से समझा जा सकता है कि मामला कितना गंभीर है। गौरतलब है कि कांग्रेस-संप्रग की जीत पर सबसे पहले अमेरिका ने सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह को बधाई भेजी थी। हमारे प्रधानमंत्री अमेरिका के सबसे बड़े हितचिंतक बन कर उभरे हैं। अमेरिकी कंपनियों के लिए भारत के सारे दरवाजे खोल दिए जा रहे हैं। यहां तक कि भारत में नाभीकीय पार्क बनाने के लिए भी अमेरिका को विशेष छूट दी जा रही है। ऐसे में अमेरिका और उसकी सीआईए ने कांग्रेस-संप्रग को जीताने के लिए चुनावी षडयंत्र किया हो, तो इसमें अचरज की बात नहीं।
ईवीएम बनाने का जिम्मा कहने भर को इलेकट्रॉनिक कारपोरेशन ऑफ इंडिया (ईसीआईएल) और भारत इलेकट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के पास है। लेकिन इसका दिल यानि चिप अमेरिका और जापन की दो कंपनियां बनाती हैं। इन्हीं कंपनियों के कर्मचारियों द्वारा ईवीएम का रक-रखाव किया जाता है, यहां तक कि वोटों की गिनती के मसय ये लोग वहां होते हैं। यह तो भारत की संप्रभुता और निष्पक्ष चुनाव प्रक्रिया के साथ खिलवाड़ है।
ईवीऐम के इस्तेमाल को फायदेमंद बताते हुए विशेषज्ञों ने कई सुझाव दिए हैं, मगर भारत में उन पर अमल नहीं किया जा रहा है। इंटरनेशनल इलेक्ट्रिकल एंड इलेकट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग नामक पत्रिका में कंप्यूटर साइंस के दो प्रोफेसरों ने एक लेख लिखा है, जिसमें ईवीएम के साथ कुछ सावधानियां बरतने के लिए नौ उपाय सुझाये हैं। इनमें एक पर भी भारत में अमल नहीं किया जा रहा है। अमेरिका में ईवीऐम के उपयोग के लिए स्पष्ट निर्देश हैं। भारत में वैसे किसी निर्देश को लागू नहीं किया जाता। 2004 में अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में धांधली के आरोप के बाद पेपर ट्रेल के उपयोग का कानून बना। पेपर ट्रेल का मतलब उस पर्ची से है जो वोट का बटन बनाने के बाद मशीन से बाहर आती है। उस पर्ची में डाले गए वोट की पुष्टि होती है। पेपर ट्रेल को देखने के बाद मतदाता उसे पास पड़े डिब्बे में डाल देता है। अगर चुनाव नतीजे को लेकर विवाद हुआ तो उन पर्चियों की गिनती कर नतीजा घोषित किया जाता है। दिल्ली के आईआईटी के पूर्व छात्रों के संगठन के चुनाव में भी पेपर ट्रेल का बंदोबस्त है, मगर दुनिया के सबसे बड़े जनतंत्र के चुनाव में संभवतया जान-बूझ कर इसकी व्यवस्था नहीं रखी गयी।
ट्रॉजन के बारे में उमेश सहगल कहते हैं, ईवीएम में इस्तेमाल की जानेवाली इलेकट्रॉनिक चिप को बनाते समय उसमें ऐसा प्रोग्राम डाला जा सकता है जिससे हर तीसरा या चौथा वोट किसी खास उम्मीदवार को मिल जाए। जैसे संप्यूटर में वायरस होता है, उसी तरह ईवीएम के चिप में ट्रॉजन डाला जा सकता है; जिसे मैं दोगला प्रोग्राम कहता हूं। यह वैसे तो सोया रहेगा, पर इसे वोटिंग से लेकर काऊंटिग तक कभी भी जगाया जा सकता है। वोटिंग के दौरान वोट किसीको मिला हो, ट्रॉजन को एक्टि‍वेट करने के बाद ईवीएम वही दिखाएगा, जो ट्रॉजन के प्रोग्राम में डाला गया है। इसे वायरलेस के जरिये भी एक्टिवेट कर सकते हैं।
सहगल काफी समय से ईवीएम को लेकर सवाल उठा रहे हैं। पर चुनाव आयोग कुछ नहीं कर रहा है। सहगल की चुनौती को देखते हुए चुनाव आयोग ने उन्हें ईवीएम की खामी निकालने को कहा। उन्हें चुन कर किन्हीं तीन ईवीएम में से खोट निकालने के लिए कहा गया। सहगल अपने साथ तीन लैपटॉप भी ले गए थे। उन्होंने चुनाव आयोग के विशेषज्ञों से कहा कि इनमें से एक में ट्रॉजन है। और बाकी दो ठीक हैं। ट्रॉजन वाले कंप्यूटर की पहचान की जाए। वो विशेषज्ञ असफल रहे। इसका मतलब यह नहीं कि उनके तीनों लैपटॉप ठीक-ठाक थे। सहगल कहते हैं, मैं वहां अपनी बात साबित कर सकता था, मगर उन्होंने कहा कि आप मशीन से छेड़छाड़ नहीं करेंगे। क्या यह संभव है? तब भला मशीन की जांच होगी कैसे? इसके बाद उन्होंने कहा, मशीन में गड़बड़ी हुई तो यह बात आप बाहर नहीं बताएंगे। यह भी संभव नहीं था। सो मैंने मना कर दिया।
बहरहाल, इस ईवीएम घोटाले में एक केंद्रीय मंत्री का नाम सामने आ रहा है। हालांकि सहगल उनका नाम फिलहाल नहीं बताना चाहते। उनका कहना है कि इसकी जांच अगर सीबीआई या केंद्रीय सर्तकता आयुक्त द्वारा करवायी जाए तो वे नाम बताने को तैयार हैं। उनका कहना है कि 2004 में केंद्रीय मंत्री बनने से पहले वे उस कंपनी के डायरेक्टर थे, जो सबसे पहले ईवीएम लेकर आयी।
    सहगल ही नहीं, अनेक लोग ईवीएम में गड़बड़ी के सबूत सहित आरोप लगाते रहे हैं। अब भी लगा रहे हैं। 2000 में मैसाचुसेट्‍स इंस्टीट्यूट के संजय शर्म और हावर्ड की गीतांजलि स्वामी ने तत्‍कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एमएस गिल को दिखाया था कि इसके चिप से छेड़छाड़ की जा सकती है। उसके बाद कुछ सुधार हुए, मगर मूल समस्या जैसी की तैसी बनी रही। 2004 में उच्चतम न्यायालय ने भी हस्तक्षेप करते हुए सॉफ्टवेयर इंजीनियर सतीनाथ चौधरी की बतायी कमियों पर विचार करने को चुनाव आयोग से कहा था, पर कुछ खास नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में अब यह अनिवार्य रूप से जरूरी हो गया है कि ऐक सर्वदलीय विशेषज्ञ समिति के जरिये ईवीएम की खामियों को दूर करने के उपाय किए जाएं। वरना सीआईए जैसी साम्राज्यवादी खुफिया एजेंसियां भारतीय जनतंत्र के साथ खिलवाड़ करती रहेगी। (समाप्त) 

वोटिंग मशीन को फुलप्रूफ होना जरूरी – विशेषज्ञ


वोटिंग मशीन को फुलप्रूफ होना जरूरी विशेषज्ञ
विशेष संवाददाता

(2009 लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद ही ईवीएम पे मेरे द्वारा उठाये प्रश्नों की पुष्टि बाद में अनेक विशेषज्ञों ने की. उनमें ही एक हैं 
 नेट इंडिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रमुख हरिकुमार प्रसाद. मेरे द्वारा उठाये गए सवाल के बाद आडवाणी ने भी इसपे अपनी गहरी चिंता व्यक्त की. उसके आबाद वे यह मुद्दा लगभग "भूल" गए. मगर सुब्रह्मण्यम स्वामी ये मुद्दा उठाते रहे. अब भी उठा रहे.)
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नई दिल्ली : वोटिंग मशीन में हेरफेर करके किसी दल विशेष की जीत को सुनिश्चित किया ही जा सकता है। यह किसी राजनीतिक दल के नेता का आरोप नहीं, बल्कि सूचना-प्रौद्योगिकी से जुड़े एक विशेषज्ञ की राय है। नेट इंडिया ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज के प्रमुख हरिकुमार प्रसाद का कहना है कि ईवीएम (वोटिंग मशीन) के दुरुपयोग को रोकने के लिए वेरीफिकेशन टूल का उपयोग अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
    हरि कुमार प्रसाद भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (भेल) के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं। पिछले महीने अकेले हरि कुमार प्रसाद ने ही नहीं, बल्कि नागपुर के जनचैतन्य वेदिका नामक संगठन के संयोजक वी. वी. राव ने एक प्रेस सम्मेलन में पत्रकारों दिखाया कि किस तरह वोटिंग मशीन में जानबूझ कर किसी दल विशेष को लाभ पहुंचाने के लिए उसे मैनुपुलेट किया जा सकता है।
    गौरतलब है कि कांग्रेस, द्रमुक, राकांपा पर आरोप लग रहे हैं कि 2009 लोकसभा चुनावों में वोटिंग मशीन में हेरफेर करके बहुमत के करीब सीटें हासिल की गयीं। खासकर तमिलनाडु, आंध्र राजस्थान और महाराष्ट्र में। इसी आरोप के तहत अन्ना द्रमुक ने हाल ही में हुए उपचुनावों का बहिष्कार भी किया। इतने बड़ा आरोप लगाने और उसे साबित कर दिखाने के बावजूद चुनाव आयोग ईवीएम में गड़बड़ किए जाने की संभावना से लगातार इंकार कर रही है। गौरतलब यह भी है कि चुनाव आयोग के तीनों आयुक्तों को कांग्रेसी समर्थक माना जाता है। इस पर काफी हंगामा भी हो चुका है।
    ईवीएम में हेरफेर का मामला सबसे पहले तृणमूल कांग्रेस ने उठाया था। हालांकि 1990 में बंगाल सीपीएम के नेता बिमान बसु ने ईवीएम मशीन की विश्व‍सनीयता पर अंगुली उठायी थी। अब तृणमूल कांग्रेस, सीपीएम, भाजपा, पासवान, लालू, जयललिता, मायावती, शिवसेना आदि भी ईवीएम की विश्वसनीयता पर अंगुली उठाने लगे हैं।
    हरि कुमार प्रसाद का कहना है कि ईवीएम को एक माइक्रो कंट्रोलर संचालित करता है। ट्रोजन हाउस नामक एक विकृत कंप्यूटर कोड के जरिए ईवीएम को संक्रमित करके प्रोग्राम में फेरबदल कर दिया जाता है। किसी एक उम्मीदवार या दल के पक्ष में इस तरह से प्रोग्राम में फेरबदल किया जा सकता है, जिससे उसे एक निश्चित वोट फीसदी प्राप्त हो जाए।
    सूचना प्रौद्योगिकी के इस रहस्योद्‍घाटन के बावजूद चुनाव आयोग चुप्पी साधे हुए है या फिर ईवीएम को ब्रह्म सत्य बताने में तुला हुआ है। चुनाव आयोग के इस रवैए से भी साबित होता है कि दाल में जरूर कुछ काला है।
    हरि कुमार का कहना है कि कंप्यूटर चिप बनाते समय भी ईवीएम में गड़बड़ी पैदा की जा सकती है। मुश्किल यह है कि उसे पकड़ पाना संभव नहीं। इसीलिए वेरीफिकेशन टूल की मदद लिया जाना जरूरी है। इससे पता चल जाएगा कि माइक्रो-कंट्रोलर में कोई गड़बड़ी तो नहीं।
    हरि कुमार का एक सुझाव यह भी है कि ऐसा इंतजाम हो ताकि ईवीएम में मतदान करने के साथ ही साथ एक स्लिप बाहर आ जाए, जिसमें लिखा होगा कि उक्त वोट किसे दिया गया। ठीक उसी तरह जिस तरह बैंकों के एटीएम मशीन से पैसा निकालने के बाद एक स्लिप बाहर आती है, जिससे पता चल जाता है कि उस वक्त कितने रुपए निकाले गए और कितना शेष बचा। अमेरिका के कैलिफोर्निया के ईवीएम में स्लिप आने का इंतजाम किया गया है।
    उनकी राय है कि बैलेट की वापसी के बजाए ईवीएम का ही उपयोग हो, मगर धांधली के सारे रास्ते बंद कर दिए जाएं। ईवीएम का फूलप्रूफ होना जरूरी है। (समाप्त)

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

महिला उत्पीडन विरोधी किसी गंभीर आंदोलन के लिए महिलाएं खुद कितनी तैयार!!



महिलाओं को 'देवी' बनने का बड़ा शौक है तो दुर्गा बनो, काली बनो. और, सारे बलात्कारियों के संहार के लिए आगे आओ.


जब तक "देवी" बनकर अपनी रक्षा न करें महिलाएं-लडकियां, तब तक वे बस पूजा करने-करवाने के ही लायक! मंदिरों की शो-पीस 
देवी!! 


महिलाओं पे हो रहे अत्याचार के लिए अनेक महिलाएं खुद भी जिम्मेवार. वे भी चाहती हैं कि उन्हें इस ज़ुल्म-बेबसी से बाहर निकालने कोई 'देवदूत' आये !!

इस नेट पे बैठीं महिलाओं के सात दिन के ट्विट देख लिए जाएँ. तो पता चल जाएगा कि वे महिला उत्पीडन विरोधी किसी गंभीर आंदोलन के लिए कितनी तैयार!!

इस नेट मीडिया में बहुत ही कम ऐसी महिलाएं हैं, जो महिला विरोधी मर्द सत्तात्मक व्यवस्था की सोच को खंडित कर रही हों.

पिता-पति-भाई-पुत्र की कमाई से आराम की जिंदगी जी रहीं यहां की कोई आधी महिलाओं को हाय-हेलो, चैटिंग, चोंचलेबाजी, घटियाराजनीति से फुर्सत नहीं!!
नेट मीडिया को पढ़े-लिखों का संसार भी माना जाता. जब यहां की तथाकथित "पढ़ी-लिखी" महिलाएं मर्दाना समाज की घटिया सोच को आगे बढ़ा रहीं हों तो...बाकी "अनपढों" से क्या उम्मीद की जाय!!
ये "पढ़ी-लिखी" महिलाएं ज्यादातर खुद को "मर्द" बनाने में ही जुटी दिख रहीं. जबकि "मर्द समाज" ने ही इनकी दुर्दशा कर रखी है!!
मर्दों की नक़ल करने के बजाय "मर्दों" के होश ठिकाने लगाने के काम जब तक ये "पढ़ी-लिखी" महिलाएं शुरू नहीं करतीं, महिला उत्पीडन जारी रहेगा.

महिलाओं को जातिवाद-धर्मवाद-दलवाद के चंगुल से बाहर आकर खुद की सुरक्षा, मर्यादा, सम्मान, स्वतंत्र अस्तित्व की लड़ाई लड़ने के लिए एकजुट होना ही पड़ेगा.

कोई “देवदूत” आसमान से नहीं उतरने वाला. उन्हें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी होगी. वे जान लें. और, महिलाओं को एकजुट करने के काम शुरू करें.

महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समितियां बनाने के काम में महिलाएं खुद आगे आएं. वरना, वे मर्दों-दलों-जातियों-धर्मों की गुलामी खटती रहेंगी.

सभी दलों में मोटे तौर पर “मर्दों” या मर्दाना सोच वाली महिलाओं का ही कब्जा. इसीलिए ये दल महिलाओं की समस्याओं के बुनियादी समाधान में अक्षम.









सोमवार, 22 अप्रैल 2013

दामिनी आंदोलन है क्या? क्या कोई दलीय प्रतिनिधि बता सकते?


कल मुख्य  रूप से मैंने तीन मुद्दों को उठाया. सुबह के वक्त महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति की भूमिका. जिसे अनेक जगह प्रसारित भी किया गया. अनेक लोगों ने फेसबुक और ट्विटर में इसके साथ सहमती भी जाहिर की और अपने विचार भी रखे. आशा है कि इस मुद्दे पे यहां जो अलग से ब्लॉग है, वहां भी सभी साथी अपने सुझाव-विचार ज़रूर ही रखते जाएंगे. ये सुझाव आगे काफी काम के साबित होने वाले. कल ही मैंने पुलिस व्यवस्था में बुनियादी सुझाव, जनतांत्रिक बदलाव की चर्चा शुरू करने का प्रयास किया, मगर दिल्ली में बलात्कार विरोधी आंदोलन पे पुलिस कार्रवाई हो जाने से अफरा-तफरी में अनेक साथी इस चर्चा में भाग नहीं ले पाए. वे सभी साथी इस ब्लॉग के जरिए चर्चा करें. अपने सुझाव दें. कल ही रात में मैंने दामिनी आंदोलन के चरित्र से जुड़े विन्दुओं को उठाने की कोशिश की. उसपे भी खास चर्चा संभव नहीं हो पायी. कुछ साथी ज़रूर चर्चा में शामिल हुए. लेकिन, इसपे भी व्यापक-विस्तृत चर्चा की सख्त ज़रूरत है... सो, इस ब्लॉग में सभी अपने विचार रखे. चर्चा करें, तो अच्छा हो. ---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- दामिनी के वक्त यह आंदोलन शुद्ध रूप से आम जनता का अपना आन्दोलन था, जिसमें महिलाओं का नेतृत्व स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आया. इस बार? इस बार दामिनी आंदोलन लगभग पूरी तरह राजनीतिक रूप ले चुका. ये अच्छा हुआ या बुरा या बीच-बीच का, इसपे बाद में अनेक विश्लेषण आते रहेंगे. मगर.. ..मगर, इस बार महिलाओं के हाथ से लगभग नेतृत्व निकल चुका दिख रहा. ये और बात कि कुछ महिला संगठन भी मैदान में. उनमें भी कुछ दलीय. दामिनी आंदोलन है क्या? क्या कोई दलीय प्रतिनिधि बता सकते?
जिन्हें दामिनी आंदोलन के चरित्र का पता नहीं; वे संसद से लेकर सड़कों तक जितना शोर मचा लें, दामिनी नहीं बचाई जा सकती! दामिनी आंदोलन राजनीतिक से कहीं अधिक सामाजिक मुद्दा.इस मुद्दे पे चुनावी राजनीति करना दामिनियों के साथ खिलवाड़ ही होगा.अधकचरे नेता जान लें. विभिन्न दलों ने विभिन्न तबकों के जनसंगठनों को अपना "गुलाम" बना रखा. उनके जरिए अपनी दलीय राजनीति चलाई.इससे उन तबकों के हितों का नुकसान हुआ. विभिन्न तबकों के हित एक जैसे होने के साथ-साथ अलग-अलग भी. ऐसे में उन तबकों के संगठनों को पूरी स्वतंत्रता या व्यापक स्वायतता देनी ज़रुरी. यही बात दामिनी आन्दोलन पे भी लागू. बल्कि कहीं ज्यादा लागू होती. दामिनी आंदोलन का नेतृत्व आम महिलाओं के हाथ हो. न कि दलीय नेताओं के हाथ. दामिनियों का दर्द दामिनियाँ ही बहुत बेहतर जान सकतीं. जिसे दलों के मर्द नेता या मरदाना समाज के दबाव में जी रहीं महिला नेता नहीं समझ सकतीं. इस ट्विट श्रृंखला में सबसे पहले जवाब देने वाले महाशय ने ये प्रतिक्रिया दी : (हालांकि वे अंतिम बात कर रहे थे. उसके बाद उन्होंने शायद कुछ वक्त के लिए ट्विटर छोड़ दिया ..... 

I am trying to quit twitter and glad that mine last few tweets may be with you :) ( Till twitter drags me back).)
what do you mean ? It is being lead by politically oriented people ? So what !!
मेरे इससे पहले के आज के और इस ट्विट के बाद के सारे ट्वीट्स देखें. फिर कोई सवाल करें. बल्कि कुछ सवालों के जवाब भी दें.
I read them and sort of agree
(इसके बाद लंबी बात चली. वे मोटे तौर पे इन सारे मुद्दों से सहमत ही दिखे. इस लिंक में हमारी बातचीत देखी जा सकती. https://twitter.com/Hello_AAP) https://twitter.com/Hello_AAP/status/326062925112541186 बहरहाल, सभी साथियों के लिए यह चर्चा फिर से जारी कर रहा. इस सिलसिले के तीनों ब्लॉग देखें. सभी एक-दूसरे से जुड़े हुए.


शनिवार, 20 अप्रैल 2013

बलात्कार सहित महिला उत्पीडन के खिलाफ मुहल्ला स्तर पे काम हों 
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इन समितियों का नेतृत्व महिलाओं के हाथ में ही हों
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* देशव्यापी बलात्कार विरोधी आंदोलन के साथ-साथ शहरों-गांवों में मुहल्ला समितियां गठित की जाएँ. जो महिला उत्पीडन-बलात्कार के खिलाफ मुहिम चलाये.

*महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति न सिर्फ बलात्कार के खिलाफ जागरण चलाये, बल्कि घरों के अंदर महिलाओं के प्रति अमानवीय बर्ताव पे भी नज़र रखे..

*महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति में हर तबके के नागरिक हों. उसका नेतृत्व भी हर तबके के हाथ हो. उसमें महिलाएं अग्रणी  भूमिका निभाएं.

*महिला उत्पीडन मुहल्ला समिति शुद्ध रूप से आम जनता की हो. सभी दलीय-निर्दलीय नागरिक अनिवार्य रूप से शामिल हों, तो ये एक मिसाल बन जाएगी.

*महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति लड़कों-पुरुषों की "बलात्कारी मानसिकता" को खत्म करने के लिए "नैतिक शिक्षा" के काम भी करे.

*बंगाल के गांवों में जब चोरी-डकैती बहुत बढ़ गयी थी, तब ऐसी मुहल्ला समितियां रात में चौकीदारी किया करती थीं. महिला मुद्दा तो और भी गंभीर बात.

*दलों-संगठनों व महिला संगठनों को महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति बनाने केलिए आगे आना चाहिए.इससे बलात्कार सहित महिला उत्पीडन पे रोक लगेगी..

*बलात्कार व अन्य प्रकार के अमानवीय महिला उत्पीडन के प्रति पुलिस-सरकारों की "मर्दाना सोच" को भी इन मुहल्ला समितियों के जरिए बदला जा सकेगा.

*महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति किसी भी प्रकार की सरकारी-दलीय सहायता के ही चले. इसे आम जनता अपनी पहल और खर्च पे चलाये.

*महिला उत्पीडन विरोधी मुहल्ला समिति का नेतृत्व मुख रूप से सुलझी हुई महिलाओं के हाथ ही हो. वो महिला झुग्गी-झोपड़ी की भी हो सकती हैं.

* जो लोग-दल-संगठन ईमानदारी से बलात्कार के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, वे महिला उत्पीडन विरोधी

 मुहल्ला समिति बनाने की पहल लेना शुरू करें.