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मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

लड़खड़ाता अमेरिका

अमेरिका का आर्थिक संकट

अंतर्राष्ट्रीय साख निर्धारक संस्था स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एस एंड पी) ने अमेरिकी क्रेडिट की रेटिंग एएए (AAA) से घटा कर एए प्लस (AA+) कर दी। बताया जाता है कि 95 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है। इस खबर ने दुनिया भर के शेयर बाजार को हिला कर रख दिया। भरतीय शेयर बाजार भी औंधे मुंह गिरा। इस आलेख के लिखे जाते समय अपने 14 महीने के सबसे निचले स्तर सूचकांक 16,000 के आसपास पहुंच गया। यही हाल दुनिया के अन्य शेयर बाजारों का भी रहा। असर ऐसा कि महज एक ही घंटे में कुछ लोगों का दिवाला पिट गया। इसीके साथ पूरी दुनिया में एक बार फिर मंदी हावी हो गयी। 2007 की मंदी का असर यह रहा कि अमेरिका में गरीबी का प्रतिशत बढ़ गया है। और 2007 से लेकर 2010 तक के आंकड़े में अच्छा-खासा उल्लेखनीय फर्क नजर आने लगा है।

बताया जाता है कि इसका असर आनेवाले सालों में और भी दिखाई देगा। हाल ही में अमेरिका के सेंसस ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़ों में बताया गया है कि 2010 में गरीबी के प्रतिशत में 0.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और यह 15.1 प्रतिशत पर पहुंच गयी है। 2007 में मंदी की शुरूआत में यह प्रतिशत 2.6 था। जबकि 2009 में 14.3 पर थी। गौरतलब है कि 15.1 का आंकड़ा सेटिंग से पहले का है। चूंकि मंदी का दूसरा दौर चल रहा है, इसलिए जाहिर है अभी इस प्रतिशत में और वृद्धि होगी।

हालांकि पहली नजर में देखने में यही लगता है कि इस रेटिंग में कोई ज्यादा फर्क तो नहीं है, लेकिन जानकारों का मानना है कि चूंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर विश्व बाजार निर्भर होता है, इसीलिए रेटिंग में हल्की-सी भी कमी का असर दिखना लाजिमी है। इस रेटिंग का कुल मिला कर आशय यह है कि अमेरिका को कर्ज देने में जोखिम है। भले ही ऐसा आनेवाले बहुत थोड़े ही समय के लिए हो; लेकिन जोखिम तो है ही। दुनिया भर में अब तक यह आम धारणा थी कि अमेरिकी सरकार का कोषागार काफी मजबूत है। यह कभी खत्म न होनेवाला कुबेर का खजाना है। इसीलिए इसे कर्ज में देने में कोई खतरा नहीं है। लेकिन एस एंड पी द्वारा हाल ही में की गयी रेटिंग से इस आम धारणा को गहरा धक्का लगा है।

लेहमैन ब्रदर समेत तमाम दिग्गज देश 2008 में आर्थिक मंदी के दौर से गुजर चुके हैं, जिसका असर पूरी दुनिया भर में देखा गया। अभी दुनिया उस झटके से उबर भी नहीं पायी थी कि एक बार फिर से मंदी के बादल मंडराने लगे। ऐसे में भविष्य को सुरक्षित कर लेने की गरज से बराक ओबामा ने कर्ज लेने का फैसला किया। यह मामला जब अमेरिकी कांग्रेस में अनुमोदन के लिए आया। लेकिन बहुमत न होने के कारण ओबामा के प्रस्ताव को हरी झंडी नहीं मिल सकी। तब रिब्लिकन पार्टी इसके लिए मनाना पड़ा। लेकिन वह तैयार नहीं हुई। इसको लेकर रिब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच लंबी स्नायविक लड़ाई चली। और बाद में कई दिनों की मशककत के बाद ओबामा सरकार रिब्लिकन पार्टी को इसके लिए तैयार करने में सफल हुए।

इससे दुनिया भर में यह संदेश गया कि अमेरिकी मुद्रा कोष लगभग खाली हो गया है। इससे पहले अमेरिका में दिनोंदिन बढ़ती जा रही बेरोजगारी के मद्देनजर राष्ट्रपति बराक ओबामा पर आउटसोर्सिंग को बंद कराने के लिए दबाव डाला गया। इसके बाद अमेरिका में निवेश के लिए राजी करने के लिए दुनिया भर में विभिन्न देशों का वे दौरा भी कर चुके हैं। इन सबसे इस आशंका को बल मिला कि अमेरिका कंगाली के कगार पर है।

साख की रेटिंग का फंडा

बहरहाल, इस पर चर्चा करने से पहले आइए देखें कि यह स्टैंडर्ड एंड पुअर्स कैसी संस्था है? 1906 में अमेरिका में स्टैंडर्ड स्टैटिस्टक ब्यूरो नाम की एक संस्था हुआ करती थी, जो अर्थ-व्यवस्था से संबंधित तमाम सूचनाओं को इकट्ठा किया करती थी। उन सूचनाओं को परे साल भर एक कार्ड के रूप में प्रकाशित किया करती थी। इसकी स्थापना लुतर ली ब्लेके ने की थी। वहीं अमेरिका में 1860 में हेनरी वर्मनम पुअर्स ने एक और कंपनी की स्थापना थी, जो अमेरिका की अर्थ व्यवस्था पर सालाना तौर पर तमाम सूचनाओं को एक किताब के रूप में प्रकाशित किया करती थी। बाद में हेनरी वर्मनम के बेटे हेनरी विलियम इसे संभाला और नाम एच. वी. एंड एच. डब्ल्यू. पुअर्स कंपनी नाम से इसे चलाया। लेकिन 1941 में दोनों कंपनी का विलय हुआ और यह स्टैंर्डड एंड पुअर्स बन गयी और यह वित्तीय सेवा कंपनी के रूप में जानी जानी लगी। वित्तीय शोध, दुनिया भर के स्टौक व बौन्ड का विश्लेषण ‍करने के साथ यह कंपनी सार्वजनिक और निजी कारपोरेशन और दुनिया के तमाम देशों की क्रेडिट की क्रेडिट रेटिंग भी करती है। इसकी रेटिंग को अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज द्वारा मान्यता भी प्राप्त है।

क्रेडिट रेटिंग के लिए ग्रेड निर्धारित है। ये ग्रेड एएए से लेकर डी तक है। हाल ही में स्टैंर्डड एंड पुअर्स संस्था ने विभिन्न पक्षों का विश्लेषण करके अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था की साख की रेटिंग की है। इसकी रेटिंग के अनुसार मौजूदा समय में अमेरिका की रेटिंग एएए से गिर कर एए भी नहीं, बल्कि उससे भी नीचे एए प्लस हो गयी है। यानि अमेरिकी अर्थ-व्यवस्था की क्रेडिट एएए की सर्वोच्च रेटिंग से एए प्लस के तीसरे पायदान पर पहुंच चुकी है। एसएंडपी ने यह भी कहा है कि यदि आगे भी यही हाल रहा तो वह अमेरिकी ऋण साख को अगले 12 से 18 महीनों में और घटा सकता है। यही दुनिया भर के निवेशकों के लिए चिंता का विषय बना गया है।

उधर स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की रेटिंग का असर जबरदस्त रहा। इतना कि बिकवाली का दौर शुरू हो गया। अमेरिकी बौन्ड के ग्राहक देशों, संस्थाओं और लोगों को भी यह आशंका होने लगी कि अगर अमेरिका का खजाना खाली है तो उनकी रकम का डूबना तय है। वहीं अमेरिका को कर्ज देने वाली संस्थाओं को भी कर्ज की रकम की वापसी को लेकर शंका होने लगी। और लगने लगा कि 2008 की आर्थिक मंदी का जिन्न एक बार फिर से बोतल से बाहर निकल आया है। इसका असर विश्व की अर्थ-व्यवस्था पर देखने को मिला। और दुनिया के तमाम प्रमुख शेयर बाजारों में भारी उथल-पुथल मच गयी।

विशेषज्ञों का नजरिया

हालांकि इस मुद्दे पर विशेषज्ञों का नजरिया अलग-अलग है। एक खेमे का यह मानना है कि 2008 की स्थिति इससे बिल्कुल अलग थी। बल्कि दोनों स्थितियों में जमीन और आसमान का फर्क है। कोलकाता के जानेमाने अर्थशास्त्री शैबाल कर का मानना है कि यह महज एक आशंका है कि अमेरिका एक बार फिर से आर्थिक मंदी की चपेट में आ सकता है। 2008 में जो स्थिति पैदा हुई थी, अर्थशास्त्र की भाषा में वह सब-प्राइम क्राइसिस कहलाती है। उस समय अमेरिकी बैंक और वित्तीय संस्थानों ने ऐसी कंपनी को कर्ज दिया था, जो कर्ज को चुकाने में सक्षम नहीं थी और कंपनी डूब गयी। इसीलिए कर्ज देनेवाली बहुत सारी संस्थाएं रकम वापस न मिलने के कारण मंदी का संकट देखने को मिला। इस बार मामला वैसा नहीं है, बल्कि एस एंड पी की रेटिंग के कारण बाजार में हड़कंप मच है।

हालांकि माना यह भी जा रहा है कि अगर यह आशंका सच साबित हुई तो अमेरिका को अपनी परियोजना से बाहर जाकर कई लाख करोड़ डौलर कर्ज लेना पड़ सकता है। अर्थशास्त्री अभिजीत रायचौधरी कहते हैं कि कर्ज लेने से अमेरिका के सरकारी खजाने पर असर पड़ेगा। ऐसे में कर्ज चुकाने में भी अमेरिका को दिक्कत पेश आएगी। जाहिर है कर्ज देनेवाले का जोखिम बढ़ जाएगा। इन्हीं संभावनाओं के मद्देनजर स्टैंर्डड एंड पुअर्स संस्था ने अमेरिका की क्रेटिड क्षमता के मद्देनजर रेटिंग की। श्री रायचौधरी का मानना है कि दावे कुछ भी किए जाएं; अमेरिका की आर्थिक सेहत के लिए ओबामा प्रशासन और अमेरिकी कांग्रेस के बीच चली रस्साकसी की कीमत अपनी साख गवां कर अमेरिका को चुकानी पड़ी है। और साथ में दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था को भी। 2008 की मंदी के बाद चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभर रहा था। लेकिन चीन ने

एस एंड पी से नाराजगी

गौरतलब है कि एस एंड पी की रेटिंग से अमेरिका में बड़ी नाराजगी है। अमेरिकी वित्त मंत्री ने टिमोथी गेथनर ने अपने एक बयान में कहा है कि रेटिंग एजेंसी एस एंड पी ने अमेरिका के वित्तीय बजट के गणित का अच्छी तरह अध्ययन नहीं किया है। बजट करार से एजेंसी ने गलत निर्णय ले लिया। एजेंसी ने अन्य मुद्दों पर ध्यान देने के बजाए पिछले कुछ महीनों से चल रही बकवास बहस पर ज्यादा ध्यान दिया। वहीं ओबामा ने भी अमेकिर ट्रेजरी सुरक्षित होने का दावा करते हुए कहा कि अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटाए जाने के बावजूद अमेरिका हमेशा ट्रिपल ए देश बना रहेगा। भले ही बाजार पर नीचे होता रहे, पर अमेरिका ट्रिपल ए देश बना रहेगा। अमेरिका की केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने अपने एक बयान में कहा है कि स्टैंडर्ड एंड पुअर्स की रेटिंग का अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारी सिक्योरिटी पर कुछ समय के लिए असर रहेगा, क्योंकि अन्य कई बड़ी रेटिंग एजेंसियों की नजर में अमेरिका की अर्थव्यवस्था अभी भी दुनिया की सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था है। चीन ने अमेरिका के सरकारी बांडों में 1600 अरब डलर का निवेश कर रखा है। जाहिर है चीन को बड़ा धक्का लगा है।

भारत की स्थिति

अमेरिका के मौजूदा हालात पर भारत ने निश्चित तौर पर बड़ी चौकस प्रतिक्रिया जतायी है। लेकिन कुल मिलाकर तमाम आशंकाओं के बीच रिजर्व बैंक से लेकर वित्तीय मंत्री प्रणव मुखर्जी, योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया और वित्ती मंत्री के आर्थिक सलाहकार कौशिक बसु तक सबने दावा किया है कि यह गंभीर चिंता का विषय नहीं है। इनका कहना है कि भारतीय बाजार की अपनी स्थिति मजबूत है और वह अमेरिका के भरोसे नहीं है। शैबाल कर का भी कहना है कि भारतीय बाजार अपनी ताकत से चलता है। 1997 से लेकर अब तक; यहां तक कि 2008 की वैश्विक मंदी के दौर में भी भारतीय बाजार को ज्यादा नकुसान नहीं उठाना पड़ा है। शेयर बाजार में बिकवाली का जो दौर इस समय चल रहा है, वह घबराहट के कारण है और यह सामयिक है। आनेवाले दिनों में भारतीय बाजार निश्चित तौर पर संभल जाएगा। (समाप्त)